वन विभाग की तत्परता, शासन की सक्रियता और जनप्रतिनिधियों की जिम्मेदारी का परिणाम

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बाघिन का अंततः रेस्क्यू: उत्तर प्रदेश के पीलीभीत जनपद के न्यूरिया क्षेत्र में बीते 45 दिनों से जारी बाघिन के आतंक का आखिरकार गुरुवार को सुखद अंत हुआ। नौ जून को गन्ने के खेत में सिंचाई कर रहे किसान मुकेश की मौत से शुरू हुई इस त्रासदी ने धीरे-धीरे न्यूरिया के 15 गांवों को अपने डर के साए में समेट लिया। कई मासूम जानें गईं, अनेक ग्रामीणों के दिन जंगल की निगरानी में और रातें जागते डर के साथ बीतीं। लेकिन इस पूरे घटनाक्रम का जो समापन हुआ, वह एक सकारात्मक और सराहनीय उदाहरण बन गया।बाघिन को पकड़ने के लिए चलाए गए 11 घंटे लंबे रेस्क्यू अभियान की सफलता ने प्रदेश के वन विभाग, जिला प्रशासन, ट्रेंकुलाइज एक्सपर्ट्स और क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों की संयुक्त और दृढ़ इच्छाशक्ति का प्रमाण दिया है। 20 से अधिक टीमें, ड्रोन निगरानी, क्षेत्रीय अधिकारियों की सतर्कता और मैदान में डटे डॉक्टरों का धैर्य – इन सभी कारकों ने मिलकर एक आदमखोर बाघिन को सुरक्षित पिंजरे में पहुंचाया, वह भी बिना किसी और हानि के।इस सफलता में सबसे पहले हम प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी को धन्यवाद देना चाहेंगे, जिनके नेतृत्व में प्रशासनिक मशीनरी न सिर्फ हरकत में आई बल्कि पूरे मिशन को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई। वन मंत्री डॉ. अरुण कुमार सक्सेना, प्रमुख सचिव अनिल कुमार, डीएम ज्ञानेंद्र सिंह, एसपी अभिषेक यादव और पीटीआर के वन अधिकारियों – डीएफओ भरत कुमार, मनीष सिंह, और फील्ड डायरेक्टर सहित पूरी टीम ने बिना रुके कार्य किया। यही प्रशासनिक समर्पण किसी भी आपदा या संकट के समाधान की कुंजी होती है।वहीं, इस घटनाक्रम में एक नाम और विशेष उल्लेखनीय रहा – वह है महामंडलेश्वर और बरखेड़ा विधायक स्वामी प्रवक्तानंद जी का। उन्होंने न केवल स्वयं बाघिन की लोकेशन पर पहुंचकर परिस्थिति का जायज़ा लिया, बल्कि वन विभाग के अधिकारियों से समन्वय कर स्थिति को संभाला। उनका यह योगदान इस बात का संकेत है कि जब जनप्रतिनिधि वास्तव में जनता के हितों के लिए सड़क पर उतरते हैं, तो परिणाम भी सकारात्मक आता है।लेकिन यह केवल एक जीत नहीं, बल्कि एक चेतावनी भी है। पीलीभीत टाइगर रिजर्व से बाहर आकर गांवों में विचरण कर रहे बाघों की बढ़ती संख्या यह संकेत देती है कि या तो वनों में उनके रहने के लिए पर्यावरणीय दबाव बढ़ रहा है, या मानवीय विस्तार ने उनके प्राकृतिक क्षेत्रों में दखल दिया है। यह विषय केवल वन विभाग तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे समाज और नीति निर्धारकों के लिए चिंता का विषय है।अब आवश्यक है कि हम दीर्घकालिक समाधान की दिशा में आगे बढ़ें। बाघों के लिए सुरक्षित कॉरिडोर, गांवों में चेतावनी और सुरक्षा प्रणाली, पीटीआर की सीमा पर घनी निगरानी व्यवस्था तथा जनजागरूकता अभियान समय की मांग हैं। इसके साथ ही, ग्रामीणों की सुरक्षा के लिए उचित मुआवजा, मनोवैज्ञानिक परामर्श और पुनर्वास योजनाएं भी लागू की जाएं।इस अभियान की सफलता को लेकर प्रदेश सरकार व विभाग की जितनी सराहना की जाए कम है, लेकिन साथ ही यह एक चेतावनी भी है – भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों, इसके लिए हमें वन्यजीव संरक्षण और मानव-वन्यजीव संघर्ष की नीतियों में ठोस सुधार की ओर भी देखना होगा।मुकेश कुमार ब्यूरो चीफ पीलीभीत

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