वंदे मातरम पर विवाद नया नहीं, क्या सच में नेहरू ने कटवा दिया था आधा गीत? जानें पूरा सच

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News India Live, Digital Desk : समाजवादी पार्टी के विधायक अबू आजमी के “वंदे मातरम” न गाने के बयान के बाद यह मुद्दा एक बार फिर सुर्खियों में है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस राष्ट्रीय गीत को लेकर बहस आज की नहीं, बल्कि आजादी से भी पुरानी है? सालों से यह दावा किया जाता रहा है कि भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने जानबूझकर ‘वंदे मातरम’ को छोटा करवा दिया था और उसके कुछ हिस्सों को हटवा दिया था। इस दावे में कितनी सच्चाई है और क्यों आज हम ‘वंदे मातरम’ का पूरा गीत नहीं गाते? चलिए, इतिहास के पन्नों को पलटकर इस पूरे विवाद की जड़ को समझते हैं।कहां से आया ‘वंदे मातरम’ गीत?’वंदे मातरम’ की रचना बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने 1882 में अपने प्रसिद्ध उपन्यास ‘आनंदमठ’ में की थी। यह उपन्यास 18वीं सदी के संन्यासी विद्रोह पर आधारित था। संस्कृत और बांग्ला में लिखा गया यह गीत बहुत जल्द ही भारत के स्वतंत्रता सेनानियों के लिए क्रांति का प्रतीक बन गया। रैलियों, जुलूसों और अंग्रेजों के खिलाफ हर प्रदर्शन में ‘वंदे मातरम’ का नारा गूंजने लगा। यह गीत गुलामी की जंजीरों को तोड़ने का सबसे बड़ा मंत्र बन गया था।विवाद की शुरुआत कैसे हुई?जैसे-जैसे यह गीत लोकप्रिय हुआ, इस पर विवाद भी शुरू हो गया। 1930 के दशक में मुस्लिम लीग और उसके नेता मुहम्मद अली जिन्ना ने इस पर आपत्ति जताना शुरू कर दिया। उनकी मुख्य आपत्ति गीत के शुरुआती दो पदों के बाद वाले हिस्सों पर थी। उनका तर्क था कि आगे के छंदों में ‘मां दुर्गा’ की स्तुति की गई है और भारत माता को दुर्गा के रूप में चित्रित किया गया है। चूंकि इस्लाम में मूर्ति पूजा की मनाही है, इसलिए उनका कहना था कि किसी मुसलमान के लिए यह गीत गाना उनके धर्म के खिलाफ होगा।क्या सच में नेहरू ने कटवाया था गीत?यहीं से वह कहानी शुरू होती है, जिसका जिक्र अक्सर किया जाता है। ‘वंदे मातरम’ को लेकर बढ़ते विवाद को सुलझाने के लिए 1937 में कांग्रेस ने एक समिति बनाई। इस समिति में सिर्फ जवाहरलाल नेहरू ही नहीं, बल्कि मौलाना अबुल कलाम आजाद, सुभाष चंद्र बोस और आचार्य नरेंद्र देव जैसे बड़े नेता भी शामिल थे।इस समिति ने पूरे गीत पर गहन विचार-विमर्श किया और पाया कि:गीत केपहले दो पद देश के लिए प्रेम और मातृभूमि को नमन करने वाले हैं। इनमें किसी धर्म या देवी-देवता का जिक्र नहीं है। यह सिर्फ राष्ट्रभक्ति की भावना से ओत-प्रोत हैं।गीत केबाद के हिस्से में धार्मिक प्रतीक और मां दुर्गा का जिक्र आता है, जिस पर कुछ लोगों को आपत्ति हो सकती है।इसलिए, देश की एकता और सभी धर्मों की भावनाओं का सम्मान करते हुए, कांग्रेस कार्यसमिति ने यह फैसला लिया कि सार्वजनिक कार्यक्रमों में ‘वंदे मातरम’ के केवलशुरुआती दो पदों को ही गाया जाएगा।तो, यह कहना कि “नेहरू ने गीत कटवा दिया,” पूरी तरह से सच नहीं है। यह फैसला किसी एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि कांग्रेस की एक समिति का सामूहिक निर्णय था, जिसमें मौलाना आजाद और सुभाष चंद्र बोस जैसे नेता भी शामिल थे। इसका मकसद गीत का अपमान करना नहीं, बल्कि इसे एक ऐसे रूप में अपनाना था जो हर भारतीय को स्वीकार्य हो और राष्ट्रीय एकता को मजबूत करे।आजादी के बाद क्या हुआ?जब भारत आजाद हुआ, तो संविधान सभा में राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत को लेकर बहस हुई। ‘जन-गण-मन’ को भारत का राष्ट्रगान (National Anthem) चुना गया। वहीं, ‘वंदे मातरम’ को भारत का राष्ट्रगीत (National Song) का दर्जा दिया गया।24 जनवरी, 1950 को संविधान सभा के अध्यक्ष और भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने घोषणा की कि ‘वंदे मातरम’ को ‘जन-गण-मन’ के बराबर का सम्मान और दर्जा मिलेगा। उन्होंने कहा, “वंदे मातरम गीत ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक ऐतिहासिक भूमिका निभाई है, और हमारे दिलों में इसके लिए वही सम्मान रहेगा जो जन-गण-मन के लिए है।”इसलिए, आज जो हम ‘वंदे मातरम’ के पहले दो पद गाते हैं, वह किसी की मनमानी का नतीजा नहीं, बल्कि आजादी के दौर में देश को एकजुट रखने के लिए लिया गया एक सोचा-समझा और ऐतिहासिक फैसला था।

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