फ्रांस ने अमेरिका-यूरोपीय संघ व्यापार सौदे पर जताई कड़ी आपत्ति, इसे यूरोप के लिए काला दिन बताया

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पेरिस/नई दिल्ली: अमेरिका और यूरोपीय संघ (ईयू) के बीच हाल ही में हुए एक बड़े व्यापार समझौते को लेकर फ्रांस ने तीव्र असहमति जताई है। फ्रांसीसी प्रधानमंत्री ने इस सौदे को ‘यूरोप के लिए एक काला दिन’ करार देते हुए इसे ‘सबमिशन’ (आत्मसमर्पण) बताया है, जिससे यूरोपीय नेताओं के बीच मतभेद स्पष्ट हो गया है। जर्मनी और इटली जैसे देशों ने जहां इस समझौते का स्वागत किया है, वहीं फ्रांस ने इसके विरोध में कड़ा रुख अपनाया है।फ्रांस की चिंताएं: कृषि और यूरोपीय संप्रभुताजानकारी के अनुसार, यह व्यापार समझौता, जिसे 1 अगस्त की अमेरिकी डेडलाइन से ठीक पहले अंतिम रूप दिया गया, यूरोपीय संघ के 70% से अधिक निर्यात पर 15% का शुल्क लगाएगा। जबकि यह दर पहले से संभावित 30% से कम है, फ्रांस का मानना है कि यह यूरोपीय हितों, विशेषकर अपने कृषि क्षेत्र के लिए, काफी हानिकारक है। फ्रांसीसी मंत्रियों ने इसे ‘संतुलित न होने वाला’ बताया है और इसे ‘क्षति नियंत्रण’ से ज्यादा कुछ नहीं माना है। राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने भी अमेरिकी टैरिफ नीतियों की “क्रूर और निराधार” बताते हुए आलोचना की थी और फ्रांस के निवेश कोSUSPEND करने का आह्वान किया था जब तक कि स्थिति स्पष्ट न हो जाए।यूरोपीय नेताओं में मतभेदजर्मनी के चांसलर फ्रेडरिक मर्ट्ज़ और इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी ने जहाँ इस समझौते को “ट्रेड युद्ध को टालने वाला महत्वपूर्ण कदम” और “विनाशकारी परिणामों से बचाव” बताया है, वहीं फ्रांस की निराशा सार्वजनिक है। फ्रांस का तर्क है कि यह समझौता अमेरिका की मांगों के आगे झुकना है और यह फ्रांस को अपनी शर्तों पर बातचीत करने के बजाय मजबूर करता है। यूरोपीय नेताओं के बीच यह मतभेद इस बात पर प्रकाश डालता है कि कैसे साझा विदेशी और व्यापार नीति को सदस्य देशों की राष्ट्रीय चिंताओं से संतुलित करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।अमेरिकी टैरिफ का व्यापक संदर्भयह मुद्दा अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा अन्य देशों पर टैरिफ लगाने की व्यापक नीति का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य अमेरिका के व्यापार संतुलन को बेहतर बनाना है। ट्रंप ने भारत जैसे देशों के व्यापार व्यवहार पर भी सवाल उठाए हैं, जबकि यूरोपीय संघ के साथ समझौता यूरोपीय बाजारों में अमेरिकी निर्यातकों के लिए अधिक स्थिरता लाया है। हालांकि, फ्रांस का यह विरोध दर्शाता है कि वह अपने हितों की रक्षा के लिए कड़ा रुख अपनाने से नहीं हिचकिचाएगा, भले ही इससे यूरोपीय संघ के भीतर ही तनाव बढ़े।

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