How human eye senses the risk of dementia know how it alerts what is crucial for eye health
कभी शायद हम सोचना भी न चाहें कि आंखें न होतीं तो क्या होता! खूबसूरत दुनिया देखने से हम महरूम हो जाते. अपने जज्बात जाहिर करने से चूक जाते. सवाल यह उठता है कि क्या आंखें हमारा यही दर्द बयां करती हैं तो इसका जवाब है नहीं, क्योंकि आंखें और भी बहुत कुछ बताती हैं. हममें से जिनकी दृष्टि ठीक है, वे बेफिक्र रहते हैं. सोच यही कि चश्मा नहीं लगा, कॉन्टैक्ट लेंस नहीं लगा, तो चिंता कैसी? लेकिन एक शोध बताता है कि रेगुलर चेकअप जरूरी है. अगर आप चश्मा नहीं पहनते हैं तो भी आपको ऑप्टोमेट्रिस्ट के पास जांच के लिए जाना जरूरी है. एक शोध तो यही बताता है. ब्रिटिश जर्नल्स ऑफ ऑप्थोमोलॉजी में एक शोध प्रकाशित हुआ, जो डिमेंशिया और आंखों से संबंधित था. यह कई साल के रिसर्च पर आधारित था.
रिसर्च में सामने आई यह बात
शोध में पता चला कि हमारी आंखें हमारे मस्तिष्क को हमारे आस-पास की चीजों के बारे में बहुत सारी जानकारी देती हैं. इससे ये साबित हुआ कि हमारी आंखों और मस्तिष्क के बीच का संबंध बहुत मजबूत होता है. शोध में पाया गया कि आई हेल्थ भी डिमेंशिया और कॉग्निटिव गिरावट का एक प्रारंभिक संकेतक हो सकता है.
स्टडी में इतने लोगों को किया गया शामिल
स्टडी में 2006 से 2010 के बीच जांची गईं आंखों की दास्तान थी और फिर 2021 में इन्हीं लोगों को जांचा गया, तो रिजल्ट सामने आया. यूके बायोबैंक की इस रिसर्च स्टडी में 55-73 वर्ष की आयु के 12,364 वयस्क शामिल हुए. प्रतिभागियों का 2006 और 2010 के बीच बेसलाइन पर मूल्यांकन किया गया और 2021 की शुरुआत तक उन पर नजर रखी गई. ये देखने के लिए कि क्या सिस्टमैटिक डिजीज (प्रणालीगत बीमारियों) से डिमेंशिया का खतरा बढ़ता है? यहां सिस्टमैटिक डिजीज से मतलब डायबिटीज, हृदय रोग और डिप्रेशन से था. पाया गया कि जो लोग इन समस्याओं से पीड़ित थे या फिर उम्र संबंधित एएमडी (मैक्यूलर डिजनरेशन, जिसमें धुंधला दिखने लगता है) से जूझ रहे थे, उनमें डिमेंशिया का जोखिम सबसे अधिक था.
कब करानी चाहिए आंखों की जांच?
जिन लोगों को कोई नेत्र रोग नहीं था, उनकी तुलना में जिन लोगों को आयु-संबंधित मैक्यूलर डिजनरेशन था, उनमें 26% जोखिम बढ़ा था, मोतियाबिंद वाले लोगों में 11% जोखिम बढ़ा था और मधुमेह से संबंधित नेत्र रोग वाले लोगों में 61% जोखिम बढ़ा था. इससे स्पष्ट होता है कि अगर कोई डायबिटीज से पीड़ित है, किसी को हार्ट संबंधी दिक्कत है या फिर डिप्रेशन का शिकार है, तो उसे नियमित तौर पर आंखों की जांच करानी चाहिए. इसके साथ ही गर्भवती को भी चिकित्सक इसकी सलाह देते हैं. इस दौरान हार्मोनल चेंजेस होते हैं. कइयों को धुंधलेपन की शिकायत होती है, तो कुछ ड्राई आइज से जूझ रही होती हैं. ऐसी स्थिति में भी चिकित्सक की सलाह जरूरी होती है.
यह चीज पहुंचाती है सबसे ज्यादा नुकसान
एक और चीज जो आज की लाइफस्टाइल से जुड़ गई है, वो है स्क्रीन टाइम. तो जिसका भी मोबाइल या कंप्यूटर स्क्रीन पर वक्त ज्यादा बीतता है, उन्हें नियमित चेकअप कराना चाहिए. हाल ही में भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) रोहतक ने एक स्टडी के आधार पर कहा कि भारत में औसतन लोग साढ़े तीन घंटे स्क्रीन देखते हुए गुजारते हैं. पुरुषों का औसत स्क्रीन टाइम 6 घंटे 45 मिनट है, जबकि महिलाओं का औसत स्क्रीन टाइम 7 घंटे 5 मिनट है. ये भी खतरे का ही सबब है. अगर ऐसा है, तो जल्द से जल्द ऑप्टोमेट्रिस्ट से अपॉइंटमेंट लेना जरूरी हो जाता है.
कैसे रखें आंखों का ख्याल?
अब बात आती है कि आखिर आंखों का ख्याल हम कैसे रख सकते हैं. फंडा एक ही है, अच्छा और पोषक खाएं. विटामिन ए का इनटेक बढ़ाएं. पोषक तत्वों से भरपूर पौधों-फलों, सब्जियों, मेवों, बीजों, साबुत अनाज और फलियों को अपनी डाइट में शामिल करें. गाजर को पारंपरिक रूप से आंखों के लिए सबसे अच्छी सब्जी माना जाता है, तो वहीं शकरकंद, अंडे, बादाम, मछली, पत्तेदार साग, पपीता और बीन्स भी दृष्टि का ख्याल रखने में माहिर हैं.
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