नई दिल्ली: भारत ने चीन के उन निवेश प्रस्तावों को लेकर अपना सख्त रुख स्पष्ट कर दिया है जो सीमा पर तनाव और गलवान घाटी में हुए हिंसक झड़प के बाद आए हैं। सूत्रों के अनुसार, वर्तमान राजनीतिक और भू-सामरिक परिदृश्य को देखते हुए, मोदी सरकार की ओर से चीन से आए किसी भी निवेश प्रस्ताव को स्वीकार करने की कोई योजना नहीं है। भारत की ओर से यह कड़ा संदेश स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि वह आर्थिक मोर्चे पर भी चीन के प्रति अपनी आत्मनिर्भरता और दृढ़ता बनाए रखना चाहता है।हमें तुम्हारे पैसे की ज़रूरत नहीं – एक कड़ा संकेतहालिया रिपोर्ट्स के अनुसार, भारत ने चीन के सामने स्पष्ट कर दिया है कि देश को बाहरी निवेश की आवश्यकता तो है, लेकिन चीन से आने वाले पैसों को स्वीकार करने की तत्काल कोई योजना नहीं है। यह प्रतिक्रिया उस वक्त आई है जब भारत अपनी घरेलू अर्थव्यवस्था को मजबूत करने और विदेशी निर्भरता कम करने पर जोर दे रहा है, विशेषकर चीनी निवेश के मामले में।एफडीआई नीति और आत्मनिर्भरता पर जोरवित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पहले भी विदेशी निवेश (FDI) नीति पर भारत के दृष्टिकोण को स्पष्ट किया है, जिसमें राष्ट्रीय सुरक्षा और संप्रभुता को सर्वोपरि रखा गया है। चीन के साथ मौजूदा सीमा विवाद और उसकी आक्रामक विदेश नीति को देखते हुए, भारत किसी भी ऐसे निवेश को स्वीकार करने के प्रति बेहद सतर्क है, जिससे उसकी आर्थिक या राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा हो सकता है। गलवान घाटी में हुई झड़प के बाद, दोनों देशों के बीच संबंधों में आई खटास का असर आर्थिक और व्यापारिक रिश्तों पर भी स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है।भारत का यह रुख देश की बदलती भू-राजनीतिक सोच को भी दर्शाता है, जहां वह न केवल अपनी आर्थिक स्वतंत्रता बनाए रखना चाहता है, बल्कि अपने पड़ोसियों के साथ कूटनीतिक और सामरिक संतुलन को भी प्राथमिकता देता है।